जल
मध्य प्रदेश में हर साल औसतन 1160 एमएम बारिश होती है। राज्य में जल का बड़ा स्रोत यहां की दस छोटी-बड़ी नदियां हैं, जो बारिश पर निर्भर रहती हैं। इसके अलावा भूजल भी राज्य की जल जरूरतों के लिए एक बड़ा स्रोत है। जमीन की सतह के ऊपर और भूमि के नीचे जल की उपलब्धता क्रमशः 81.5 लाख एचए मीटर और 35.53 बीसीएम है। मध्य प्रदेश की नदियों के वर्षा जल पर आधारित होने की वजह से इनमें पानी की उपलब्धता भी उस दौरान हुई वर्षा पर ही निर्भर करती है। इस तरह इनमें भारी उतार-चढ़ाव होता रहता है। इनमें पानी की कमी से ना सिर्फ सिंचाई और पनबिजली परियोजनाएं बुरी तरह प्रभावित हो जाती हैं, बल्कि दूसरे उपयोगों के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं हो पाता। राज्य की जलवायु को ले कर किए गए आकलन के मुताबिक वर्षा की सघनता लगातार बढ़ती जाएगी। इसलिए राज्य में जल संचयन और वितरण के उपायों को ले कर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जल संग्रहण और वितरण के बहुत से ढांचे काफी पुराने हो चुके हैं। इसलिए राज्य में बाढ़ की आशंका को रोकने के लिए ऐसे ढांचों को ले कर गंभीरता से प्रयास किए जाने की जरूरत है। भूगर्भ जल की भी राज्य में बुरी स्थिति है। खास कर राज्य का पश्चिमी भाग इससे बहुत प्रभावित है।
मुख्य रणनीतियाँ
- जल संसाधन संबंधी सार्वजनिक स्त्रोतों का विस्तृत डाटा बेस बनाना
- प्रदेश में भूजल विकास की गतिविधियों को और अधिक गति देना
- जहां भूमिगत जल का भारी दोहन हुआ है, उन इलाकों पर विशेष जोर देते हुए भूमिगत जल पुनर्भरण को बढ़ावा देना
- कुशल जल वितरण तंत्र और प्रबंधन के विकास की योजना बनाना
- जल के बेहतर प्रबंधन अभ्यासों, जैसे बेहतर हिसाब किताब रखना, भूमिगत जल का नियंत्रित दोहन और जल का पुनर्चक्रण करना इत्यादि को बढ़ावा देना
- नदी घाटी स्तर तक के समन्वित जल प्रबंधन को बढ़ावा देना
- अधिक वर्षा के अनुमानों को ध्यान में रखते हुए वर्त्तमान जल भंडारण संरचनाओं की समीक्षा करना
- परम्परागत जलस्त्रोतों और भूमिगत जल पुनर्भरण संरचनाओं को पुनर्जीवित करना
- जलवायु अपरिवर्तन संबंधी शोध और विकास पर जोर देना
योजना निर्माण और क्रियान्वयन में जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं को शामिल करने के लिए संस्थागत और कर्मचारी क्षमता वर्धन करना
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